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अभिव्यक्ति की अभिलाषा

निर्जन वन में
डूबे मन को
सूर्योदय की आशा है
कैसे खुद को व्यक्त करू
अभिव्यक्ति की अभिलाषा है
घनघोर अँधेरा छाया
चहुँओर प्रेत मंडराया
सहमा ठिठुरा 
बैठा वह 
ख़ामोशी से मुस्काया
ख़ामोशी के 
इन लब्जों की
क्या कोई परिभाषा है
कैसे खुद को 
व्यक्त करू
अभिव्यक्ति की अभिलाषा है
थी यह वक्त की
सारी माया
माहौल में है 
अब कलरव छाया
होगा कब
खुशियों से दीदार 
इंतज़ार का देखो
फल है आया
इंतज़ार इन लम्हों में
ना दिखती 
कोई निराशा है
कैसे खुद को व्यक्त करूँ
अभिव्यक्ति की अभिलाषा है

 
 
     
 

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देश की हुंकार

कर सिंहनाद गर्जना
तोड़ सारी वर्जना
करे देश अब हुंकार है
क्रांति की दरकार है
लोग कहते है वहां
सजा मौत का दरबार है

वे अपने होकर भी 
इतने पराये हो गए
लालच सत्ता के दलदल में
सारे रिश्ते खो गए
तेरी तीक्ष्ण बुद्धि वाक पटुता
छल प्रपंच बेकार है
देश का एक एक शख्स
कफ़न संग तयार है

बलिदानों की बलिवेदी
मांगती कुर्बानिया
रह अड़चन रोड़े सब
लाखो हैं परेशानिया
हो गयी शरुवात जब
तब रुकना बेकार है
वादों की चाशनी से तो
चले जाते हर बार है

कौन जाने कब थमेगा
जुल्म का ये सिलसिला
धीरे धीरे हीं सही
बढ़ रहा है काफिला
बज उठी रण दुधुम्भी 
बदलाव की ललकार है
सज उठे साज सब
जय हो की जयकार है
करे देश अब हुंकार है
क्रांति की दरकार है..

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