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मात्र एक प्रतीक

मैं मात्र एक प्रतीक हूँ 
वर्तमान में सजीव हूँ
भ्रमरता के भरम में
खो गया  धरम में
उलझ कई वहम में
अहम् का अतीव हूँ 
मैं मात्र एक प्रतीक हूँ

आत्म मुग्ध स्वप्रभाव से
अकिंचन सा अभाव से
हीन दीन दबाब से
पथिक एक पतित हूँ
मैं मात्र एक प्रतीक हूँ

भौतिकता के कई चरण
ढोंगियों ने किये वरण
लाज कर  हरण
बन आधुनिक भी अतीव हूँ
मैं मात्र एक प्रतीक हूँ 

अंधी दौड़ से न हांफता
खुद से हीं मै भागता
बस सोच यही कांपता
भविष्य का अतीत हूँ
मैं मात्र एक प्रतीक हूँ

बदल जीने के मायने 
चला जीवन को मापने
खुद को रख सामने
उदाहरण एक सटीक हूँ 
मैं मात्र एक प्रतीक हूँ..

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जीवन और सपने

मेरा
एक सपना था
टूट गया
सपने तो होते
हीं हैं टूटने के लिए
अगर ना टूटे तो
जिंदगी में अहसास कहाँ
धडकनों के तेज़ धड़कने
की वो आवाज़ कहाँ
चेहरे पर भय मिश्रित
ख़ुशी  के वो भाव कहाँ
हूँ जिंदा अभी
है वक्त यहाँ
कुछ कर गुजरूँगा
ऐसा वो
अंदाज़ कहाँ 
खुली आँखों से जो दिखे
वही तो दुनिया है
स्पन्दन है
हलचल है
वही चेतन
और जीवन है
बंद आँखों में तो
ख़ामोशी है
नीरवता है
मदहोशी
और निर्ज़नता है 
शायद सपने तो 
अचेतन है
और जीवन एक 
केतन है
आज फिर एक
सपना टूट गया
इस चुभन के साथ
कि मैं जिंदा हूँ
तैयार हूँ
फिर एक 
सपने के लिए 
हाँ और नये
सपनों के लिए....

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एक बंजारा

एक बंजारे  सी है जिन्दगी
सुन बंजारे का ये कहना
ख्वाब तो लाखों हैं,मगर
पूरा न कोई सपना


बिछड़े अपने हैं कई
चाह कर कह न सके
मंजिले हर पल नई
राह में रुक न सके
बस शामियाने की जरुरत
आशियाना वर्जित हमे
दिल की कोई कदर
सब भाव रंग अर्पित उन्हें
हो चूका निष्ठुर हृदय
नस नस भरी भरी वेदना
एक बंजारे सी है जिंदगी
सुन बंजारे का ये कहना


खुद में,खुद को सिमट कर
भीड़ से मिलते रहे
हर पल रोशन रहे शमा
ये सोच, जलते रहे
कह रहा बंजारा अभी
आँखों में लेकर नमी
बस छोड़ते चलो निशां
आसमा हो या फिर ज़मी
सांसो के अंतिम सफ़र तक
नहीं हार
है,थमना
एक बंजारे
सी है जिन्दगी
सुन बंजारे का ये कहना

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अभिव्यक्ति की अभिलाषा

निर्जन वन में
डूबे मन को
सूर्योदय की आशा है
कैसे खुद को व्यक्त करू
अभिव्यक्ति की अभिलाषा है
घनघोर अँधेरा छाया
चहुँओर प्रेत मंडराया
सहमा ठिठुरा 
बैठा वह 
ख़ामोशी से मुस्काया
ख़ामोशी के 
इन लब्जों की
क्या कोई परिभाषा है
कैसे खुद को 
व्यक्त करू
अभिव्यक्ति की अभिलाषा है
थी यह वक्त की
सारी माया
माहौल में है 
अब कलरव छाया
होगा कब
खुशियों से दीदार 
इंतज़ार का देखो
फल है आया
इंतज़ार इन लम्हों में
ना दिखती 
कोई निराशा है
कैसे खुद को व्यक्त करूँ
अभिव्यक्ति की अभिलाषा है

 
 
     
 

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देश की हुंकार

कर सिंहनाद गर्जना
तोड़ सारी वर्जना
करे देश अब हुंकार है
क्रांति की दरकार है
लोग कहते है वहां
सजा मौत का दरबार है

वे अपने होकर भी 
इतने पराये हो गए
लालच सत्ता के दलदल में
सारे रिश्ते खो गए
तेरी तीक्ष्ण बुद्धि वाक पटुता
छल प्रपंच बेकार है
देश का एक एक शख्स
कफ़न संग तयार है

बलिदानों की बलिवेदी
मांगती कुर्बानिया
रह अड़चन रोड़े सब
लाखो हैं परेशानिया
हो गयी शरुवात जब
तब रुकना बेकार है
वादों की चाशनी से तो
चले जाते हर बार है

कौन जाने कब थमेगा
जुल्म का ये सिलसिला
धीरे धीरे हीं सही
बढ़ रहा है काफिला
बज उठी रण दुधुम्भी 
बदलाव की ललकार है
सज उठे साज सब
जय हो की जयकार है
करे देश अब हुंकार है
क्रांति की दरकार है..

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सफ़र

इस सफ़र को अब एक
हमसफ़र चाहिए
जहाँ बस सके आशियाना
वो शहर चाहिए

कब तक जले यूँ
अकेला दिया
इसके लौ को भी
नुरे नज़र चाहिए
इस सफ़र को अब 
एक हमसफ़र चाहिए

कोई आया करीब
बन कर नसीब
पढ़ सकूँ ऐसा ख़त
वो खबर चाहिए
इस सफ़र को अब 
एक हमसफ़र चाहिए

नाउम्मीदों में कटता सारा समा
फरिश्तें भी खो गएँ जाने कहाँ
मौला ! अब इन दुयाओं में
तेरा असर चाहिए
इस सफ़र को अब 
एक हम सफ़र चाहिए

जिन्दगी के सफ़र को सजाते हुए
कई मिल के पत्थर बनाते हुए
जगमगा दू जहाँ
ये हुनर चाहिए
इस सफ़र को अब 
एक हमसफ़र चाहिए...

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जीवन एक परीक्षा

इन टेढ़े - मेढें राहों से क्या घबराना
जब जीवन एक परीक्षा है
यहाँ सांसे मिलती
गिन - गिन कर
दिन भी मिलते
चुन - चुन कर
वो लाख कहे
कठपुतली तुझको
इंसा बन कर जीना है
तुझे इस बात की फिकर नहीं
यह भीख है या फिर भिक्षा है
इन टेढ़े - मेढें  राहों से क्या घबराना
जब जीवन एक परीक्षा है


आंधी आये या तुंफा 
चाहे बदले सारा जमाना
क्षण भंगुर इस दुनिया में 
तू खुद को अमिट बनाना
जीवन की धुन है ऐसी
चंद लम्हों के सपनो जैसी
जी ले आँखों के सब सपने
इसे मन्त्र कहो या दीक्षा है
इन टेढ़े - मेढ़े राहों से क्या घबराना
जब जीवन एक परीक्षा है


प्यार का मंतर फूंक
हमे यहाँ से जाना है
अगर जीते जी ना सही 
फिर मर  कर अलख जगाना है
ना कर तू अभिमान कभी
हैं कई जिस्म पर
एक जान सभी
दिल से दिल को जोड़ यंहा
यही जीवन की शिक्षा है
इन टेढ़े - मेढ़े राहों से क्या घबराना
जब जीवन एक परीक्षा है
 

तुझे इतिहास के पन्ने दे जगह
शब्द कहें तू किन सा था 
जब उठे अर्थी तेरी
लोग कहें क्या इंसा था
साधारण रह कर भी
असाधरण कुछ कर जाना
यही तेरी अंतिम इक्छा है
इन टेढ़े- मेढ़े राहों से क्या घबराना
जब जीवन एक परीक्षा है...

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