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देश की हुंकार

कर सिंहनाद गर्जना
तोड़ सारी वर्जना
करे देश अब हुंकार है
क्रांति की दरकार है
लोग कहते है वहां
सजा मौत का दरबार है

वे अपने होकर भी 
इतने पराये हो गए
लालच सत्ता के दलदल में
सारे रिश्ते खो गए
तेरी तीक्ष्ण बुद्धि वाक पटुता
छल प्रपंच बेकार है
देश का एक एक शख्स
कफ़न संग तयार है

बलिदानों की बलिवेदी
मांगती कुर्बानिया
रह अड़चन रोड़े सब
लाखो हैं परेशानिया
हो गयी शरुवात जब
तब रुकना बेकार है
वादों की चाशनी से तो
चले जाते हर बार है

कौन जाने कब थमेगा
जुल्म का ये सिलसिला
धीरे धीरे हीं सही
बढ़ रहा है काफिला
बज उठी रण दुधुम्भी 
बदलाव की ललकार है
सज उठे साज सब
जय हो की जयकार है
करे देश अब हुंकार है
क्रांति की दरकार है..

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2 comments:

Fani Raj Mani CHANDAN said...

जय हो की जयकार है
करे देश अब हुंकार है
क्रांति की दरकार है..

वीर रस से ओत-प्रोत सुन्दर काव्य रचना

आभार
फणी राज

Jyoti Mishra said...

lovely !!
well expressed and quite inspiring too.

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