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विजेट आपके ब्लॉग पर

है मन व्यथित
तन पीड़ित
रोम रोम तड़ित

झर झर झरती 
आसुंयों की लड़ी
न जाने कब बीतेगी
ये अंधकार की घडी

है धार कुंद
प्रहार मंद
जिन्दगी बनी
एक द्वन्द

अविरल बारिश
मुसलाधार 
नैया फसी बीच
मझधार

तूफान का झंझावत
बना है यथावत
तैयार कर तू गज
ये वीर छत्रिये महावत

कस तू हर  
कसौटी को
कर दमन हर 
चुनौती को

हो विजयी
जिन्दगी की 
रणभूमि में
न रुक कभी अपने
कर्मभूमि में
न रुक कभी 
अपने कर्मभूमि में.....
 

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विरह की बरसी

नहीं, अब नहीं होगा
मुझसे फिर प्यार
क्यूंकि, हुआ था 
मुझे यह एक बार
गुनगुनाया था संग
मैं उसके कभी
ख्वाबो में भरे थे
रंग जहाँ के सभी
नज़रे बचाकर
सबसे छुपाकर
रखा था उसको
दिल में सजाकर
बढ़ी थी धड़कन
जब हुई आंखे चार
नहीं,अब नहीं होगा 
मुझसे फिर प्यार


आई थी वो मेरे 
दिल के करीब
लेकिन बन न सका 
मैं उसका नसीब
मिल कर बिछड़ा
जैसे कोई अपना
चंद पलों में
बिखरा एक सपना
अब, यादों में आती 
है वो बारम्बार
नहीं, अब नहीं होगा
मुझसे फिर प्यार


थे हम दोनों
खुश बड़े
अलग सी लीक
पे बिलकुल खड़े
क्रूर विधाता 
को यह नहीं भाया
प्रेम में विरह 
की रीत निभाया
छीन लिया उसने
मेरा संसार
नहीं, अब नहीं होगा
मुझसे फिर प्यार


कैसे रूठती थी
तो मनाता था मैं
रोयीं आँखों को भी 
हँसता था मैं
बीत गए 
सुख के सब रैन
आधी रातो को 
भी जागती अब नैन
हिल सा गया हूँ
उसे मैं हार
नहीं, अब नहीं होगा 
मुझसे फिर प्यार
क्यूंकि, हुआ था मुझे 
यह एक बार.......   

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मचलता भारत

आज मैंने लहरें देखी
फिर उठते तूफान को देखा
इस मचलते भारत में
एक नए अरमान को देखा

उस बुजुर्ग की शंख ध्वनि पर
दौड़ा  आया सारा देश
जाति धर्म और भाषा बोली
एक हो गए सबके वेश
आह्लादित होते मेरे मन ने
अद्भुत इस संग्राम को देखा
इस मचलते भारत में
एक नए अरमान को देखा

वो इस बात से बेखबर
कि हम हो रहे हैं बेसबर
नवीनता की चाहत में
अंकुरित होते नव प्राण को देखा
इस मचलते भारत में
एक नए अरमान को देखा

करो फैसला अभी यहीं
अब नहीं तो कभी नहीं
साठ साल में पहली बार
झुकते झूठे शान को देखा
इस मचलते भारत में
एक नए अरमान को देखा...
एक नए अरमान को देखा...  

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