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विरह की बरसी

नहीं, अब नहीं होगा
मुझसे फिर प्यार
क्यूंकि, हुआ था 
मुझे यह एक बार
गुनगुनाया था संग
मैं उसके कभी
ख्वाबो में भरे थे
रंग जहाँ के सभी
नज़रे बचाकर
सबसे छुपाकर
रखा था उसको
दिल में सजाकर
बढ़ी थी धड़कन
जब हुई आंखे चार
नहीं,अब नहीं होगा 
मुझसे फिर प्यार


आई थी वो मेरे 
दिल के करीब
लेकिन बन न सका 
मैं उसका नसीब
मिल कर बिछड़ा
जैसे कोई अपना
चंद पलों में
बिखरा एक सपना
अब, यादों में आती 
है वो बारम्बार
नहीं, अब नहीं होगा
मुझसे फिर प्यार


थे हम दोनों
खुश बड़े
अलग सी लीक
पे बिलकुल खड़े
क्रूर विधाता 
को यह नहीं भाया
प्रेम में विरह 
की रीत निभाया
छीन लिया उसने
मेरा संसार
नहीं, अब नहीं होगा
मुझसे फिर प्यार


कैसे रूठती थी
तो मनाता था मैं
रोयीं आँखों को भी 
हँसता था मैं
बीत गए 
सुख के सब रैन
आधी रातो को 
भी जागती अब नैन
हिल सा गया हूँ
उसे मैं हार
नहीं, अब नहीं होगा 
मुझसे फिर प्यार
क्यूंकि, हुआ था मुझे 
यह एक बार.......   

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1 comments:

varsha said...

ultimate....

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