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बुधिजीवी का वहम

एक दिन
जाग उठा मेरा अहम्
छा गया मानस पटल में 
बुधि जीवी होने का वहम 
सोचा आज करूँगा शास्त्रार्थ 
कब काम आयेंगे मेरे यह काव्यार्थ 
सीना तान प्रचंड में
घर से निकला मैं घमंड में 
निकलते ही  निरीह सा एक
फटे हाल प्राणी दिखा 
सोचा आज क्यों न 
कुछ इसे हीं सीखा
मैंने उसे आवाज लगायी 
प्रतुय्तर में कुछ आवाज़ न आई 
लम्बे लम्बे डग 
मैं पहुंचा उसके पग 
देखा वह व्यस्त था
पसीने से पस्त था
मैंने पूछा हे हीन बुधि 
तू क्या करता है
एक विनम्रता भरा जबाब आया 
मान्यवर मेहनत से ही तो 
अपना पेट भरता है
मेरे अट्टहास से अट्टालिका गूंज गयी
कहा ये कैसी मेहनत है भई
सुनो मेहनत तो, मैं करता हूँ 
हर दिन नए विद्वान को पड़ता हूँ
बाइबिल कुराण का ज्ञाता हूँ
वेद पुराण की खाता हूँ  
 सरल शब्दों में उसने कहा 
वेद कुराण न मेरे किसी काम की 
बीबी बच्चो की दो रोटी
मुझे पुण्य देती है चारो धाम की
उसने मुझे झुठला दिया 
मेरे दंभ को हिला दिया 
फिर भी ज्ञान के नशे में चूर
बोला मेरा सुरूर 
मुर्ख क्या तुझे नहीं पता ?
मैं समाज का नीति निर्धारक हूँ 
तेरे जैसे कई लोगो की 
चंद रोटियों का व्यवस्थापक हूँ 
इस बार उसने हौले से नज़र उठाई 
फिर मेरे नजरो से नजर मिलायी
और सुस्पष्ट शब्दों में कहा 
बाबु माना आप ज्ञाता हो
चंद रोटियों के दाता हो
मगर करता हूँ एक सवाल 
फिर न करना कोई बबाल
मेरा भाई किसान था 
खुद पर उसको शान था 
परसों कर ली उसने खुदकुशी
क्यों की बच्चों को न दे पता था वह खुशी
इधर उसकी अर्थी  उठी
उधर उसकी बीबी चल बसी
छोटा सा था उसका संसार 
बिखर गया पूरा परिवार
मालिक,क्या आप मौत के निर्धारक हो
या फिर यमराज के व्यवस्थापक हो
बचा नहीं पाते हो चंद जानन को
आ जाते हो पोथी लेकर वाचन को
उसने आगे कहा 
हे मंडूक तुम कूप में रहते हो
और खुद को ज्ञानी कहते हो
जायो लौट जायो अपने महल में 
कुछ दम नहीं तुम्हारे इस पहल में
शर्म से गडा मैं नज़रे चुरा रहा था
आज एक अज्ञानी मुझे ज्ञानी बना रहा था 
तुच्छ है वह सारा ज्ञान 
इस यथार्थ के सामने
चल पड़ा उसी छण
मैं  धरा को थामने
आज कोई दिखा रहा है
मुझको आइना 
हे प्रभु, मुझ में
बुधि जीवी होने का भ्रम 
कभी आये न      
     

  
  
 
  

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26 comments:

Gagan Gurjar "Saarang" said...

दिल को छू गई आपकी कविता ......यह एक प्रेरणा हैं आज के समाज के लिए

अंतर्मन said...

thnkk u sirr... :)

vijaymaudgill said...

bahut khoob dost. sach main kisi ko bhi budhijivi hone ka veham nahi palna chahiye. kyuki jab aap akhri sans le rahe hote ho tab bhi koi bacha aa k apko gyan de jata hai. isliye ye bhram aur eham sab ko tyag dena chahiye.

shukriya

अंतर्मन said...

@ sushil sir... margdarshan evm subhkamnayoo kliye aapko sukiya..

अंतर्मन said...

@ vijay sir.. thnxx sir... waise bilkul sahi kaha aapnee

अंतर्मन said...

@ samay.. sukriya aapko bhi :-)

journalist priyanka said...

its a good poem. the way you added the burning topic in your poem so lightly, i like that. when i was reading the poem i thought that its all about your inner feeling for becoming a'BUDHIJIVI' but the last few paras touched my heart. BEST OF LUCK FOR WRITING SUCH POEMS IN FUTURE...

वीना श्रीवास्तव said...

बहुत सुंदर भाव....
बहुत अच्छी रचना
यूं ही लिखते रहिए...
http://veenakesur.blogspot.com/
यहां भी आइए...

neha said...

gud one amar............the words,the meanig is very deep and it touches the inner feeling of the reader............

kgandharva said...

Pregnant with ideas!! Excellent !

अंतर्मन said...

@ priyankaa.... thnxx dear .. i ll try to do best.

अंतर्मन said...

veena jii... sukriyaa...jarur main apkee blog ko follow karungaa... :)

अंतर्मन said...

neha... thnxx... or behtarr karne ki kosish karunga.. :)

अंतर्मन said...

@ gandhrav sir... thnxx 4 d motivation :)

Vidrohisoul said...

Gr8 idea picked and full justice done to it boy...
Very free flowing poem kept reading till the end.
Way to go... Keep it up!

Fani Raj Mani CHANDAN said...

Bahut khoobsoorat Kavita hai aur bahut hi sundar bhaaw hain.. adbhut!! uttam!!

Regards
Fani

अंतर्मन said...

@ vidrohi soul.. thnxx sir

अंतर्मन said...

@ chandan bhai.. thnxx.. bas klisat ki jagah saral shabdo mei likhne ki kosish karta huu

तलाश said...

bahut sandar likha hai yahi vaham hota hai har budhijivi ko........................ keep it up

शकील समर said...

behad maarmik prastuti. aap ka har sabd yatharth ka aaina hai.

अंतर्मन said...

@ akshay... :)

अंतर्मन said...

@ shakeel bhai...dhanybaad bas aapka hi intzaar tha.. :)

संगीता पुरी said...

इस नए सुंदर से चिट्ठे के साथ आपका हिंदी ब्‍लॉग जगत में स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!

Unknown said...

लंबी कविता, पर लय और तुकबंदी में आपने शिथिलता नहीं आने दी। बेहद मार्मिक कविता। आपसे अनुरोध है कि आप कविता नहीं गीत लिखें।
य़ाद वही कवितायें रह जाती है जो गायी और गुनगुनाई जा सके। तभी बच्चन और दिनकर आज भी जीवंतमान है और निराला पाठ्यपुस्तकों से बाहर नहीं जाने जाते। आपमें सुंदर गीत लिखने की क्षमता है यह मैं देख चुका हूं। थोड़ी मेहनत और। भले ही महीनों लग जायें पर जब हमारे सामने आये तो हम भूल न पायें, कविता को और उसके संदेश को।

अंतर्मन said...

@ sangita mam .. thnxx :)

अंतर्मन said...
This comment has been removed by the author.

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