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विजेट आपके ब्लॉग पर

है मन व्यथित
तन पीड़ित
रोम रोम तड़ित

झर झर झरती 
आसुंयों की लड़ी
न जाने कब बीतेगी
ये अंधकार की घडी

है धार कुंद
प्रहार मंद
जिन्दगी बनी
एक द्वन्द

अविरल बारिश
मुसलाधार 
नैया फसी बीच
मझधार

तूफान का झंझावत
बना है यथावत
तैयार कर तू गज
ये वीर छत्रिये महावत

कस तू हर  
कसौटी को
कर दमन हर 
चुनौती को

हो विजयी
जिन्दगी की 
रणभूमि में
न रुक कभी अपने
कर्मभूमि में
न रुक कभी 
अपने कर्मभूमि में.....
 

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5 comments:

पहाड़ी कन्या said...

lovely written amar:)

Sushil Bakliwal said...

रुक जाना नहीं तू कहीं हार के...

अंतर्मन said...

@ niyati.. thnxx dost....

अंतर्मन said...

@ sushil sir.. bas aap log yunhi duyaa dete rahyiee :)

तलाश said...

guud bahut accha likha
ruke na tu dare n tu

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