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बुद्धिजीवी और मौत की छाया

एक खुशनुमा शाम
मैं निकला 
जिन्दगी की अँधेरी 
गलियों के
सुनसान सफ़र में
मंजिल की तलाश में
निकलते ही पीछे से
एक बुद्धिजीवी ने 
टोका
मैंने पूछा
भाई मेरे राह को
क्यूँ रोका
जबाब मिला 
ए ! सिरफिरे
जमाना ख़राब है
रात होने को है
कहाँ जाता है
पढ़ा नहीं
उधर जाना मना है
क्यूँ अपनी
मौत बुलबाता है
मैंने कहा
ये मेरे ख्वाबो की 
राह है
मुझे बस मेरी मंजिल की
चाह है
आपको धन्यबाद
बतलाता हूँ
अब मैं
आगे जाता हूँ
रात हुई
छुटा शहर
चल रहा
अभी सफ़र
तन्हाइयों में
थोड़ी झिझक में
कुछ मौत के
खौफ में
अचानक
एक कुत्ते के
भौंकने की 
आवाज़ आई
राहत मिली मुझे
सोचा
अब अकेला नहीं 
हूँ मौत भाई
मैं और मेरे 
साथ
वो कुत्ता
उसने भी मेरे संग
कुछ देर बितायी
फिर कहा
भाई
अब मैं जाता हूँ
क्यूंकि शहर के
बुद्धिजीवी भछको
का तो मैं ही 
एक रछक हूँ
अगर मैं न गया
तो 
मेरी वफ़ादारी पर
उंगुली उठाई जाएगी
फिर जाँच कमीशन
बैठा
मुझे सजा 
सुनाई जाएगी
मैंने कहा धन्यवाद
आपको
साथ निभाने का
करो दुयाएँ 
मेरे लिए
मेरी मंजिल पाने का
था हैरान कुत्ते
की समझदारी पर
साथ में हो आया गर्व
उसकी वफ़ादारी पर
आधी रात ढल गयी
चौराहे पर आते आते
मैं
बेचैन परेशान
मंजिल का न कोई
नामो निशान
शायद सही रास्ते
आगे बढ़ा
 हुआ
ठिठक कर खड़ा
रोंगटे हो गए खड़े
मेरे पग आगे न बढ़े
ये कैसी
साया है
क्या उस बुद्धिजीवी 
द्वारा बताई
यही मौत की
छाया है
मैंने डरते-डरते
अपनी गर्दन घुमाई
आंख खोलते हीं
मुझे खुद पर
हँसी आयी
ओह ! यह तो मेरी हीं
साया  है
हर राह साथ चलने वाली
मेरी हीं छाया है
मेरी तन्हाई है
मेरी परछाई है
यह आँखों का भरम है
बस मौत का वहम है
अब सामने मुझे
मेरी मंजिल 
आई नज़र
बढ़ चला 
मैं उस डगर
क्या ?
बुद्धिजीवी
अपनी ही छाया से
डरते हैं ?
शायद !
इसलिए तो 
मंजिल की राहों में
प्रवेश निषेध
का चिन्ह लगाये रहते हैं
प्रवेश निषेध का चिन्ह लगाये रहते हैं .........

बुद्धिजीवी और मौत की छाया 

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2 comments:

ramawtaryadav said...

very nice buddy...u've thrown light on a issue that's something to do in every common man's life.......great work bhai.keep it up...

अंतर्मन said...

@ram sir.. thnx.bro.. :)

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