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तन्हाई का आलम

तन्हाई के इस आलम में
तन्हा तन्हा सा हूँ मैं
ख़ामोशी के इस मंज़र में
सहमा सहमा सा हूँ मैं
बेखबर सा बेसबर सा
फिरता मारा मारा
अब कोई न आने वाला
शायद मैं बेचारा
तन्हाई के आलम में....
वीराने से रास्ते
वीरानी सी छाई
पल भर पहले साथ थे
अब ख़ामोशी हैं पसरायी
तन्हाई के इस आलम में...
किस बात से रूठ गयें वो
किस बात पे टूट गयें
शायद गलती मेरी हो
जो हम राहों में छुट गयें
तन्हाई के इस आलम में...
ये क्या हुआ
और क्यों हुआ
क्या गलत था क्या सही
मुझको तो कुछ पता नहीं
 पर जिस बात की सजा मिली
वैसी भी कोई खता नहीं
तन्हाई के इस आलम में
ना रह तन्हा तन्हा तूं
ख़ामोशी के इस मंज़र में
ना रह सहमा सहमा तूं
मंजिले आनी अभी
रास्तें हैं बाकी
किस बात का गम तुझे
ना रह ठहरा ठहरा तूं 
तन्हाई के इस मंज़र में
ना रह सहमा सहमा तूं.......... 

     

    

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2 comments:

तलाश said...

bahut badiya dost

अंतर्मन said...

@ akki thanxx bro.. :)

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