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न जाने हम क्या ढूंढते हैं...(मेरी लिखी पहली कविता)..

खामोश
समंदर की गहराइयों में
अँधेरी 
रातो की परछाइयों में
न जाने 
हम क्या ढूंढते हैं
बिखरे
हैं ख्वाब मेरे
अधूरी
है जिन्दगी मेरी
इन बिखरे तिनकों में

न जाने
हम क्या ढूंढते हैं
आँखों में
है मंजिल मेरी
दिल में 
कुछ अरमा मेरे
जिन्दगी की
इन 
पथरीली राहों में
न जाने
हम क्या ढूंढते हैं
एक छोटा 
सा सपना मेरा
न इस जहाँ
में कोई 
अपना मेरा
शायद
अँधेरी इन
गलियों में
रोशन एक
दिया ढूंढते हैं
न जाने
हम क्या ढूंढते हैं.............
 
 






 
 

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