अगर अपनी सांस्कृतिक स्मृति सहेज कर रखना गलत है..मत नाम रखो भोजपाल...अगर अपने पुरखो को इज्ज़त देना गलत है..तो मत नाम रखो भोजपाल..अगर ऐतिहासिक विरासत को पहचान देना गलत है..तो मत नाम रखो भोजपाल..अगर भोजपाल देहाती,अटपटा और पिछड़ा शब्द लगता है तो..मत नाम रखो भोजपाल..लेकिन कृप्या करके..राजा भोज जैसे महान हस्ती की आड़ में राजनीति तो मत करो..कृपया करके उन्हें किसी विशेष दल की सांस्कृतिक धरोहर बता राजा भोज का अपमान तो मत करो..पिछले तीन महीने में मध्यप्रदेश में ८९ किसानो(सरकारी आकडे) ने आत्म हत्या की है..यह संख्या कम नहीं है..मगर चंद औपचरिकता के बाद किसी ने कुछ बोलने की जहमत नहीं उठाई..मगर भोपाल का नाम भोजपाल रखने की बात क्या चल पड़ी मानो भोपाल पर पहाड़ टूट पड़ा..सेव भोपाल जैसे अभियान चलाये जाने लगे..रैलियां करने की बात शुरु हो गयी..राज्य की कई अन्य समस्यों पर ध्यान गया..ताकि किसी बहाने सरकार को रोका जा सके..गरीब किसानो की याद आ गयी..जिन बेचारो का क्या..उनके लिए न तो भोपाल का कोई मतलब हैं न भोजपाल का..ये पेट भरे बुद्धिजीवी वर्ग का एक नया तमाशा है..जिनको अपना मनोरंजन करना है..इसमें रोमांच,साहसिकता और ग्लेमर भी है...तरकश में विचार्रो के तीर भरे जायेंगे..वाद विवाद का नया मंच होगा..ज्ञान का आडम्बरपूर्ण प्रदर्शन ..फिर भोपाल हो या भोजपाल...कोई फर्क नहीं पड़ेगा..इनके लिए तमाशा खतम..पैसा हज़म वाली बात होगी.. काश इतनी जागरूकता हमने महंगाई,.बेरोज़गारी..कालेधन..किसान आत्म हत्या..घोटाले और भ्रष्टाचार के लिए दिखाई होती.तो शायद इस देश की तकदीर ही बदल गयी होती...जरा सोचिये......
इस युग का अप्रासंगिक
1 month ago
1 comments:
dost, main aapse poori tarah sehmat hu
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