ARMENDRA AMAR. Powered by Blogger.
RSS

LATEST:


विजेट आपके ब्लॉग पर

देवबंद के बहाने.....भारतीय इस्लाम....

देवबंद के बहाने.....भारतीय इस्लाम....

र्म या संप्रदाय की बात करे तो "इस्लाम" महान धर्मो में एक  है. धर्मग्रंथो की बात करे तो "क़ुरानशरीफ "  से ज्यादा  पाक  और पवित्र धर्मग्रन्थ शायद ही कोई मिले. अगर संतो की बात करे तो "मोहमद साहब " से बेहतर संत विरले ही मिलेंगे. लेकिन अफ़सोस मोहमद साहब  से बाद की पीढियों ने इस्लाम की महानता,पवित्रता एवं सम्पूर्णता को एक अलग हीं  मायने दे दिए. उन्होंने इस्लाम की महानता का अर्थ प्रचार और प्रसार माना, तो पवित्रता को रुढियो में जकड सम्पूर्णता के अर्थ को समझने में गलती कर दी..

जिसके फलस्वरूप इस्लाम तो वही रहा, लेकिन इसको मानने वाले पिछड़ते चले गए. रूढ़िवादिता अज्ञानता और प्रचार प्रसार को जो दौर चला इसका गवाह इतिहास है. विश्व के कई देश इस्लामिक हो गए. इस्लामिक होना गलत नहीं पर इस्लाम के नाम पर दकियानूसी और हिंसा परोसना गलत है. प्राचीन भारतीय उपमहाद्वीप में भी इसका फैलाव बड़ी तेज़ी से हुआ. भारतीय संस्कृति का लचीलापन, इसकी विस्तृत सोच ने इस्लामियत को  तो अपना लिया लेकिन कट्टरवादी नहीं बने. भारतीय समाज में एक नए शब्द का प्रचलन शुरु हुआ जिसे "भारतीय इस्लाम" कहा जाता है. जो यहाँ आक्रमणकारी  बन कर आये थे,वह सब यहीं के होकर रह गए. सम्राट अशोक के साथ अकबर भी को हम भारतीय अपने महान चक्रवर्ती सम्राटो में शुमार करते है.

यहाँ तक तो सब ठीक  था, दुरिया तब बढने लगी जब ब्रिटिसर्स ने अपने पांव  फ़ैलाने शुरु किये. फुट डालो शासन  करो की नीति के तहत अपने साम्राज्य का विस्तार शुरु कर दिया. बात उस दौर की है जब १८५७ में हुई प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को अंग्रेजो ने विफल कर दिया था. जिसके पश्चात भारतीय इस्लामी विद्वानों के एक समूह ने देवबंद विश्व विद्यालय की स्थापना की. इसका उदेश्य उपमहाद्वीप में पश्चिमी देशों के फैलाव एवं भौतिकतावादी सभ्यता को रोकना था. तत्कालीन विद्वानों  को डर था की कहीं यह विस्तार उनके धर्म को को न निगल जाये. साथ ही साथ मुसलमानों को उन परिस्थितियों खतरों से बचाना था जो उनके धर्म के लिए हानिकारक हो.

भारत में एक केंद्र के स्वरुप  में  देवबंद नामी नगर में इस्लामी अरबी मदरसा  की स्थापना हुई.यह विश्वविधायालय दारुल- उलम से सम्बंधित है. शुरूआती  दौर के  इसके प्रमुख व्यक्तित्वों में मोहमद कासिम, रशिम अहमद गंगोही आदि शामिल हैं. गहरी जड़ो वाला  इस  बौध्विक  मदरसे  ने अपने हर स्नातक पर गहरी छाप छोड़ी है. यह एक सामान्य विश्वविध्यालयो से अलग, जिसकी अपनी एक विशिष्ट पहचान है.इसके अपने कुछ नियम,कायदे-कानून.मत सिधांत आदि है

फिलहाल देश का यह पवित्र विश्वविद्यालय विवादों के दौर से गुजर रहा है .वह भी सिर्फ इसलिए की इसके वाइस  चांसलर मौलाना गुलाम मोहमद वस्तानावी ने गुजरात मुसलमानों में हो रहे विकास  के लिए  नरेन्द्र मोदी की तारीफ कर दी थी. वस्तानावी  वैसे  शख्स है, जिन्होंने इस्लाम समाज की कडवी सचाई,इसके जरूरतों और उन्नति आवश्यकता  को समझा है. इस असाधारण शख्स  ने १९७९ में महाराष्ट -गुजरात सीमा पर जनजातिय छेत्र  में महज़ ६ बच्चों के साथ एक झोपड़ी में  शुरू  हुए मदरसे को "२ लाख " के छात्रों वाले संस्थान में बदल दिया

शायद  अभी इस्लाम समय के उस चौराहे  पर खड़ा है, जहाँ  उसे यह चुनना है वह धार्मिक कर्मकांडी समाज की संपत्ति बने या  शैक्छिक उदारवादी विचारधारा में अपना भविष्य ढूंढे. रूढ़िवादिता ,हठधर्मिता, एवं कर्मकांडी लोगो के वर्चस्व ने हीं अब तक इस्लाम को उसके वास्तविक इस्लाम से दूर रखा है. मोहमद साहब के उपदेशो, कुरान शरीफ के पाक आयातों को अपने स्वार्थ के लिए तोड़-मरोड़ कर पेश करने वालो की जमात नहीं चाहती की एक आम मुसलमान प्रगति करे.

अज्ञानता,निर्धनता एवं विचारो की दुर्बलता का एक भयावह उदहारण "अमेरिका और इन जमातों  का मिल कर अफगानिस्तान को  तालिबान बनाना है.स्वार्थ सिधि  के लिए किया गया यह कुकृत्य आज खुद खुद अमेरिका  सहित पुरे विश्व के लिए खतरे का सबब है. इस्लाम समाज अभी भी  कहीं न कहीं मध्यकालीन सोच में जी रहा है.उस समय  समाज में पोप, पंडितो, और मौलवियों की तूती बोलती थी. जहाँ पोप के साम्राज्य को पूंजीवादी व्यबस्था ने ध्वस्त किया, तो वही पंडितो  के तिलिस्म  को पश्चिमीकरण के नक़ल ने तोडा. आज भी इनका अस्तित्व है,परन्तु इन्हें उतना ही महत्व दिया जाता  है जितने के यह वास्तविक हक़दार है.

अफ़सोस मुस्लिम समाज अभी  भी धार्मिक कर्मकांडी समूह की मिलकियत से  बाहर नहीं निकल पाया है.लेकिन कोशिश जारी है, सुगबुगाहटों और छटपटाहटों  का दौर शरू हो चूका है. अपने झूठे  अस्तित्व को बचने की लालच में  ये कर्मकांडी  समूह इस्लाम के महान शब्दों, नामों  का दुरूपयोग करते है.अब देखना यह है की एक साधारण मुसलमान की सम्पूर्णता और पवित्रता की चाहत, रुढ़िवादियों, हठवादियों  की स्वार्थ परक लालसा पर कब भरी पड़ती है. जिस दिन ऐसा होगा, उसी दिन से वास्तविक  इस्लाम का पुनः अभुय्दय होगा....

  • Digg
  • Del.icio.us
  • StumbleUpon
  • Reddit
  • RSS

0 comments:

Post a Comment

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...