लाल चौक की कहानी तथ्यों की जुबानी
लाल चौक पर पहले कई बार पाकिस्तान का झंडा, हरा इस्लामिक झंडा और एक बार सफेद झंडा फहराया जा चुका है। पिछले कुछ सालों में यहां कई बार 14 अगस्त को इस्लामिक और पाकिस्तानी झंडा भी फहराया गया है। 1990 में 14 अगस्त को यहां पाकिस्तानी झंडा फहराया गया। २६ जनवरी, १९९२ में भारतीय जनता पार्टी युवा मोर्चा के कार्यकर्ताओं के साथ मुरली मनोहर जोशी ने लाल चौक पर झंडा फहराया था। 27 जून 2008 को अमरनाथ भूमि विवाद के समय यहां हरे झंडे फहराए गए थे। गौरतलब है कि श्रीनगर में होने वाले कई बम धमाके और मुठभेड़ों का लाल चौक गवाह रहा है।
पिछले दो सालों में लाल चौक से महज 200 मीटर दूर सीआरपीएफ के बंकर के पास भी तिरंगा नहीं फहराया जा सका है। 1993 में लाल चौक पर बीएसएफ का बंकर बनाया गया था, हालांकि 2003 में इस बंकर को हटा दिया गया। 2003 से 2007 तक यहां सीआरपीएफ का बंकर रहा। 2007 के बाद से यहां पर कोई बंकर नहीं रहा। 2008 में अमरनाथ भूमि विवाद के बाद यहां सुरक्षा बढ़ा दी गई। पिछले साल गर्मियों में उपद्रव के बाद पिछले 6 महीने से लाल चौक पर तारबंदी की गई है। लाल चौक पर सफेद झंडा भी फहराया गया है। 7 नवंबर 2010 को जम्मू-कश्मीर एनजीओ फोरम के सदस्यों ने लाल चौक पर सफेद झंडा फहराया था। हालांकि एनजीओ के सदस्यों पर कुछ उपद्रवी युवाओं ने हमला कर दिया था। घाटी के इतिहास में यह पहला दिन था जब लाल चौक पर सफेद झंडा फहराया गया था।
अंधेर नगरी चौपट रजा..टके सेर खाजा टके सेर भाजा....
जब लाल चौक पर इस्लामिक झंडा ,पाकिस्तानी ध्वज न जाने कितनी पर फहरा दिए जाने के बाद भी, कोई हो हल्ला नहीं, कोई प्रश्न नहीं कोई विवाद नहीं कोई उबाल नहीं तो फिर तिरंगे पर बबाल क्यों..सिर्फ इसलिए ताकि इसी बहाने सरकार रुष्टो को तुष्ट कर सके और,बीजेपी अपना राष्टवादी कार्ड खेल सके और अलगाववादी अपना विलाप आलाप सके...कुछ तो शर्म करो..कब तक बाटोगे देश को और कितना बाटोगे,किन किन वजहों से बाटोगे..कभी तो कुछ ऐसा कर जायो की आगे आने वाली पीढ़ी कहे,इस देश का इतिहास कहे ..नहीं अमुक दौर में अमुक नेतायो की फौज ऐसी थी ..जिसने जिसने स्वार्थ छोड़ कर परमार्थ पर ध्यान दिया ...सायद ये सपना ही रह रह जाये खैर....
फिर आपत्ति कहाँ ...राष्ट ध्वज से जुड़े नियम...
26 जनवरी 2002 विधान पर आधारित कुछ नियम और विनियमन हैं कि ध्वज को किस प्रकार फहराया जाए:
क्या करें:
* राष्ट्रीय ध्वज को शैक्षिक संस्थानों (विद्यालयों, महाविद्यालयों, खेल परिसरों, स्काउट शिविरों आदि) में ध्वज को सम्मान देने की प्रेरणा देने के लिए फहराया जा सकता है। विद्यालयों में ध्वज आरोहण में निष्ठा की एक शपथ शामिल की गई है।
* किसी सार्वजनिक, निजी संगठन या एक शैक्षिक संस्थान के सदस्य द्वारा राष्ट्रीय ध्वज का अरोहण/प्रदर्शन सभी दिनों और अवसरों, आयोजनों पर अन्यथा राष्ट्रीय ध्वज के मान सम्मान और प्रतिष्ठा के अनुरूप अवसरों पर किया जा सकता है।
* नई संहिता की धारा 2 में सभी निजी नागरिकों अपने परिसरों में ध्वज फहराने का अधिकार देना स्वीकार किया गया है।
क्या न करें:

* इस ध्वज को सांप्रदायिक लाभ, पर्दें या वस्त्रों के रूप में उपयोग नहीं किया जा सकता है। जहां तक संभव हो इसे मौसम से प्रभावित हुए बिना सूर्योदय से सूर्यास्त तक फहराया जाना चाहिए।
* इस ध्वज को आशय पूर्वक भूमि, फर्श या पानी से स्पर्श नहीं कराया जाना चाहिए। इसे वाहनों के हुड, ऊपर और बगल या पीछे, रेलों, नावों या वायुयान पर लपेटा नहीं जा सकता।
* किसी अन्य ध्वज या ध्वज पट्ट को हमारे ध्वज से ऊंचे स्थान पर लगाया नहीं जा सकता है। तिरंगे ध्वज को वंदनवार, ध्वज पट्ट या गुलाब के समान संरचना बनाकर उपयोग नहीं किया जा सकता।
नेहरु उबाच......
1947 में जवाहरलाल नेहरू ने यहां ऐतिहासिक रैली को संबोधित किया था। रैली नेहरू ने कहा था, 'आप मेरे हो गए हो मैं आपका। अब हम एक हो गए हैं।
कश्मीर नीति या अनीति..
शायद नेहरु जी को भी ये नहीं पता था की उनका ये कश्मीर लगाव या प्रेम आगे आने वाले भविष्य में भारत के सामने सिरदर्द बनने वाला है...जैसे ध्रितराष्ट के पुत्र मोह के कारण महाभारत हुआ ..उसी तरह नेहरु जी की गलत कश्मीर नीतियों के कारण कई बार भारत पाक युद्ध हो चूका है ..उससके बाद आने वाली सरकार भी नहीं संभाली..और महान सेकुलर भारत के महान उदहारण को जैसे तैसे अपनी लुंज पुंज नीतियों से अपने साथ रखने की कोशिश करती रही..और आज वही भस्मासुर आपने पालक पोषक को ही भस्म करने को तैयार खड़ा है ....
क्या वाकई हम एक दूजे के हो गए.....
अगर जम्मू और कश्मीर महाराज हरी सिंह के हस्ताक्छर के बाद भारत का था तो फिर कबीलाई युद्ध के बाद नेहरु संयुक्त राष्ट संघ क्यों क्यों गए ..?
कहने को तो जम्मू और कश्मीर हमारा अभिन्न अंग है..लेकिन इस अंग को सामान्य से अधिक विशेष लाड दुलार (धारा ३७०)...?
अगर भारत ek सेकुलर राष्ट है.तो फिर वहां से कश्मीरी पंडितो का विस्थापन...उनके पुनर विस्थापन की व्यबस्था नहीं ..?
अगर जम्मू भारत का ताज है है तो अलगाववादियों को इतनी अहमियत...
शायद
जम्मू कश्मीर एक विकट और जटिल समस्या है जिसका निदान एक दिन में संभव नहीं है ..यही कहते कहते शायद पीढ़िया गुज़र जाएँगी...मगर इस समस्या का निदान नहीं निकलेगा..और जिसका भुगतान भुगतेंगी आने वाली पीढ़िया और वर्तमान आम निरीही कश्मीरी ..जो ऊपर वाले से भीख मांगेंगे और कहेंगे ..
या अल्लाह इस स्वर्ग से तेरा नरक भला......
लाल चौक पर पहले कई बार पाकिस्तान का झंडा, हरा इस्लामिक झंडा और एक बार सफेद झंडा फहराया जा चुका है। पिछले कुछ सालों में यहां कई बार 14 अगस्त को इस्लामिक और पाकिस्तानी झंडा भी फहराया गया है। 1990 में 14 अगस्त को यहां पाकिस्तानी झंडा फहराया गया। २६ जनवरी, १९९२ में भारतीय जनता पार्टी युवा मोर्चा के कार्यकर्ताओं के साथ मुरली मनोहर जोशी ने लाल चौक पर झंडा फहराया था। 27 जून 2008 को अमरनाथ भूमि विवाद के समय यहां हरे झंडे फहराए गए थे। गौरतलब है कि श्रीनगर में होने वाले कई बम धमाके और मुठभेड़ों का लाल चौक गवाह रहा है।
पिछले दो सालों में लाल चौक से महज 200 मीटर दूर सीआरपीएफ के बंकर के पास भी तिरंगा नहीं फहराया जा सका है। 1993 में लाल चौक पर बीएसएफ का बंकर बनाया गया था, हालांकि 2003 में इस बंकर को हटा दिया गया। 2003 से 2007 तक यहां सीआरपीएफ का बंकर रहा। 2007 के बाद से यहां पर कोई बंकर नहीं रहा। 2008 में अमरनाथ भूमि विवाद के बाद यहां सुरक्षा बढ़ा दी गई। पिछले साल गर्मियों में उपद्रव के बाद पिछले 6 महीने से लाल चौक पर तारबंदी की गई है। लाल चौक पर सफेद झंडा भी फहराया गया है। 7 नवंबर 2010 को जम्मू-कश्मीर एनजीओ फोरम के सदस्यों ने लाल चौक पर सफेद झंडा फहराया था। हालांकि एनजीओ के सदस्यों पर कुछ उपद्रवी युवाओं ने हमला कर दिया था। घाटी के इतिहास में यह पहला दिन था जब लाल चौक पर सफेद झंडा फहराया गया था।
अंधेर नगरी चौपट रजा..टके सेर खाजा टके सेर भाजा....
जब लाल चौक पर इस्लामिक झंडा ,पाकिस्तानी ध्वज न जाने कितनी पर फहरा दिए जाने के बाद भी, कोई हो हल्ला नहीं, कोई प्रश्न नहीं कोई विवाद नहीं कोई उबाल नहीं तो फिर तिरंगे पर बबाल क्यों..सिर्फ इसलिए ताकि इसी बहाने सरकार रुष्टो को तुष्ट कर सके और,बीजेपी अपना राष्टवादी कार्ड खेल सके और अलगाववादी अपना विलाप आलाप सके...कुछ तो शर्म करो..कब तक बाटोगे देश को और कितना बाटोगे,किन किन वजहों से बाटोगे..कभी तो कुछ ऐसा कर जायो की आगे आने वाली पीढ़ी कहे,इस देश का इतिहास कहे ..नहीं अमुक दौर में अमुक नेतायो की फौज ऐसी थी ..जिसने जिसने स्वार्थ छोड़ कर परमार्थ पर ध्यान दिया ...सायद ये सपना ही रह रह जाये खैर....
फिर आपत्ति कहाँ ...राष्ट ध्वज से जुड़े नियम...
26 जनवरी 2002 विधान पर आधारित कुछ नियम और विनियमन हैं कि ध्वज को किस प्रकार फहराया जाए:
क्या करें:
* राष्ट्रीय ध्वज को शैक्षिक संस्थानों (विद्यालयों, महाविद्यालयों, खेल परिसरों, स्काउट शिविरों आदि) में ध्वज को सम्मान देने की प्रेरणा देने के लिए फहराया जा सकता है। विद्यालयों में ध्वज आरोहण में निष्ठा की एक शपथ शामिल की गई है।
* किसी सार्वजनिक, निजी संगठन या एक शैक्षिक संस्थान के सदस्य द्वारा राष्ट्रीय ध्वज का अरोहण/प्रदर्शन सभी दिनों और अवसरों, आयोजनों पर अन्यथा राष्ट्रीय ध्वज के मान सम्मान और प्रतिष्ठा के अनुरूप अवसरों पर किया जा सकता है।
* नई संहिता की धारा 2 में सभी निजी नागरिकों अपने परिसरों में ध्वज फहराने का अधिकार देना स्वीकार किया गया है।
क्या न करें:

* इस ध्वज को सांप्रदायिक लाभ, पर्दें या वस्त्रों के रूप में उपयोग नहीं किया जा सकता है। जहां तक संभव हो इसे मौसम से प्रभावित हुए बिना सूर्योदय से सूर्यास्त तक फहराया जाना चाहिए।
* इस ध्वज को आशय पूर्वक भूमि, फर्श या पानी से स्पर्श नहीं कराया जाना चाहिए। इसे वाहनों के हुड, ऊपर और बगल या पीछे, रेलों, नावों या वायुयान पर लपेटा नहीं जा सकता।
* किसी अन्य ध्वज या ध्वज पट्ट को हमारे ध्वज से ऊंचे स्थान पर लगाया नहीं जा सकता है। तिरंगे ध्वज को वंदनवार, ध्वज पट्ट या गुलाब के समान संरचना बनाकर उपयोग नहीं किया जा सकता।
नेहरु उबाच......
1947 में जवाहरलाल नेहरू ने यहां ऐतिहासिक रैली को संबोधित किया था। रैली नेहरू ने कहा था, 'आप मेरे हो गए हो मैं आपका। अब हम एक हो गए हैं।
कश्मीर नीति या अनीति..
शायद नेहरु जी को भी ये नहीं पता था की उनका ये कश्मीर लगाव या प्रेम आगे आने वाले भविष्य में भारत के सामने सिरदर्द बनने वाला है...जैसे ध्रितराष्ट के पुत्र मोह के कारण महाभारत हुआ ..उसी तरह नेहरु जी की गलत कश्मीर नीतियों के कारण कई बार भारत पाक युद्ध हो चूका है ..उससके बाद आने वाली सरकार भी नहीं संभाली..और महान सेकुलर भारत के महान उदहारण को जैसे तैसे अपनी लुंज पुंज नीतियों से अपने साथ रखने की कोशिश करती रही..और आज वही भस्मासुर आपने पालक पोषक को ही भस्म करने को तैयार खड़ा है ....
क्या वाकई हम एक दूजे के हो गए.....
अगर जम्मू और कश्मीर महाराज हरी सिंह के हस्ताक्छर के बाद भारत का था तो फिर कबीलाई युद्ध के बाद नेहरु संयुक्त राष्ट संघ क्यों क्यों गए ..?
कहने को तो जम्मू और कश्मीर हमारा अभिन्न अंग है..लेकिन इस अंग को सामान्य से अधिक विशेष लाड दुलार (धारा ३७०)...?
अगर भारत ek सेकुलर राष्ट है.तो फिर वहां से कश्मीरी पंडितो का विस्थापन...उनके पुनर विस्थापन की व्यबस्था नहीं ..?
अगर जम्मू भारत का ताज है है तो अलगाववादियों को इतनी अहमियत...
शायद
जम्मू कश्मीर एक विकट और जटिल समस्या है जिसका निदान एक दिन में संभव नहीं है ..यही कहते कहते शायद पीढ़िया गुज़र जाएँगी...मगर इस समस्या का निदान नहीं निकलेगा..और जिसका भुगतान भुगतेंगी आने वाली पीढ़िया और वर्तमान आम निरीही कश्मीरी ..जो ऊपर वाले से भीख मांगेंगे और कहेंगे ..
या अल्लाह इस स्वर्ग से तेरा नरक भला......
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