निर्जन वन में
डूबे मन को
सूर्योदय की आशा है
कैसे खुद को व्यक्त करू
अभिव्यक्ति की अभिलाषा है
घनघोर अँधेरा छाया
चहुँओर प्रेत मंडराया
सहमा ठिठुरा
बैठा वह
ख़ामोशी से मुस्काया
ख़ामोशी के
इन लब्जों की
क्या कोई परिभाषा है
कैसे खुद को
व्यक्त करू
अभिव्यक्ति की अभिलाषा है
थी यह वक्त की
सारी माया
माहौल में है
अब कलरव छाया
होगा कब
खुशियों से दीदार
इंतज़ार का देखो
फल है आया
इंतज़ार इन लम्हों में
ना दिखती
कोई निराशा है
कैसे खुद को व्यक्त करूँ
अभिव्यक्ति की अभिलाषा है
1 comments:
awesome line...
Post a Comment