बड़े अरमा से हमने
बनाया घरौंदा
सपनो से सुन्दर
सजेगा ये सोचा
कब गिर पड़े हम
पता भी न चला
जब आया वो हल्का
हवा का एक झोंका
वहां थी थोड़ी रौशनी
और घना था अँधेरा
ताबूत में था
जब होश आया
फिर सबने मुझे
कफ़न से सजाया
बड़ा हीं दिलचस्प
ये सारा वाक्या
पर था मेरे सामने मेरा घरौंदा
सपनो से सुंदर सजेगा ये सोचा
बंद थी आँखे
और हाँथ खुले
थमी थी धड़कन
और हम थे धुले
रोते हुए सबने
कंधे पर उठाया
यह क्या हो रहा है
समझ हीं न आया
कोई रोको इन्हें
कोई रोको उन्हें
करो न दूर मुझसे
मेरा घरौंदा
सपनो से सुंदर
सजाऊंगा था ये सोचा
था वो घरौंदा
पर न थे हम
क्या ये जिंदगी
एक सपना
या फिर धोखा
जहाँ से आये
वहां को चले हम
करके तुम्हारे
हवाले अपना घरौंदा
हाँ अपना घरौंदा..हाँ अपना घरौंदा ...
8 comments:
Har zinda cheez ko maut ka mazaa chakhna hai,
Sirf maut se wafa ki ummid rakhta hun...
@ vidrohi soul.. sahi kaha aapne...
kya bat hai bhai....very awsome creation....very touching....
@ ram sir... thnxx :)
yahi jivan ka sasvat satya hai babu good tumhari kavita pad kar kisi ki yaad a gayi babu
@ akhshay kiski yaad aa gayii ..??
yaar bahut sandar kavita hai accha likha hai. keep going on
@ akii.. bas tum logo ka pyar bana rahe..kosish karunga or behtar likhun :)
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