आज हूँ मैं इतना शर्मिंदा
क्यूंकि मैं इंसान हूँ
अपने गम से कम
कर ज्यादा आंखे नम
दुसरो की ख़ुशी से
परेशान हूँ
क्यूंकि मैं इंसान हूँ
हीन भावना
कुंठाग्रसित
अपनी अक्रमन्यता से त्रसित
कर बंदरो सी हरकते
शायद मैं नादान हूँ
क्यूंकि मैं इन्सान हूँ
छीन कर तोड़ कर
फोड़ कर मार कर
क्या जीत पाउँगा मैं
इस बात से अनजान हूँ
क्यूंकि मैं इंसान हूँ
तिड़कमे भिड़ा
छल कपट लगा
छोटा सा कुछ पा
रह जाता इस भरम में
अब तो मैं भगवान हूँ
क्यूंकि मैं इंसान हूँ
किसे कहूँ कितना कहूँ
किस बात को कैसे कहूँ
आज मैं हूँ कितना दुखी
क्यूंकि मैं इंसान हूँ.....
क्यूंकि मैं इंसान हूँ
अपने गम से कम
कर ज्यादा आंखे नम
दुसरो की ख़ुशी से
परेशान हूँ
क्यूंकि मैं इंसान हूँ
हीन भावना
कुंठाग्रसित
अपनी अक्रमन्यता से त्रसित
कर बंदरो सी हरकते
शायद मैं नादान हूँ
क्यूंकि मैं इन्सान हूँ
छीन कर तोड़ कर
फोड़ कर मार कर
क्या जीत पाउँगा मैं
इस बात से अनजान हूँ
क्यूंकि मैं इंसान हूँ
तिड़कमे भिड़ा
छल कपट लगा
छोटा सा कुछ पा
रह जाता इस भरम में
अब तो मैं भगवान हूँ
क्यूंकि मैं इंसान हूँ
किसे कहूँ कितना कहूँ
किस बात को कैसे कहूँ
आज मैं हूँ कितना दुखी
क्यूंकि मैं इंसान हूँ.....